एक ही तो जिंदगी होती है।

एक ही तो जिंदगी होती है।उसे भी हम खुद के सवालों में उलझ कर,लोगो की सुनकर इतना कॉम्प्लिकेटेड बना देते है।जैसे हम आज तक सब कुछ सही करते आ रहे है।और आगे भी सही ही करेंगे। जैसे कभी हमसे कुछ गलत हुआ ही नहीं। सब सही ही हुआ है।जबकि जब नजर उठा कर देखते है। तो हमारे पास ही गलत और सही सब सामने होता है।फिर भी हम लगातार नजरंदाज करके आगे बढ़ते रहते है।कहते है न की गलती करो।मगर उस गलती से हमेशा कुछ सीख लो।ताकि वो गलती फिर से ना हो।मगर हम उस गलती से सीखने की जगह अपने अंदर और अहंकार भर लेते है।की हमने कुछ गलत किया ही नहीं।और एक बाद एक और गलतियां करते जाते है। और फिर एक समय बाद हमे समझ आता है की हम क्या करते आ रहे है।और आने वाली जेनरेशन को सलाह देने लगते है। और जब हमारा वक्त था तब हमने नही समझा तो आने वाली जेनरेशन क्या समझेगी।और फिर हम भगवान से अपनी गलतियों की क्षमा मांगने लगते है। क्यों हम उस समय पर नहीं समझते जब समझना चाहिए था।शायद हम उस समय गलतियों से सीख लेते तो आगे कभी गलतियां होती ही नहीं।और हम खुद को और अच्छा बना पाते।मगर हम हमारे अंदर एक अहंकार को जन्म दे रहे होते है।और खुद को ये समझा रहे होते है। की हमने कोई गलती की ही नहीं।जिस तरह हम रोड पर गिरे इंसान को उठाने या उसकी मदद करने की जगह उसे वहां ऐसे ही छोड़कर देखकर आगे बढ़ जाते है।और फिर थोड़ी ही दूर जाकर ये सोचते है।की काश मेने रुककर उसकी मदद कर दी होती।मगर वहां भी एक क्षण के लिए हमारे माइंड में यह जाता है।की लोग देखेंगे तो क्या कहेंगे।और बस यही सोच कर आगे बढ़ जाते है।इसलिए कभी लोगो की सोच कर लोगो के डर से हमे अपने निर्णय नही लेने चाहिए।हम हमारे सभी निर्णय स्वतंत्र रूप से आत्मनिर्भर होकर लेने चाहिए।

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