हम हमेशा सही और गलत में उलझे रहते है।

हम हमेशा सही और गलत में उलझे रहते है। जबकि सही और गलत कुछ होता ही नहीं है। हम बस हमें जो सही लगता है। जो हमारे मन और मस्तिष्क से जो आवाज आती है। हम उसे सही और गलत मान लेते है।और ये सब हम हमारी मान प्रतिष्ठा के लिए कर रहे होते है।और उन लोगो की सोचकर कर रहे होते है जिन्होंने खुद का जीवन अपनी जिद्द पर जिया होता है। की वो सही करते है।और हम खुशियों के साथ समझौता कर रहे होते है।और ये सब हम हमारे सोचने से नहीं करते ये सब हम दुसरो को देखकर करते है। दुसरो को देखकर मानते है। कई  बार तो हम खुद ऐसी जगह आकर उलझ जाते है। जहा हम खुशियों को भूल कर बस खुदके नाम और अच्छाई के लिए निर्णय ले लेते है। और में सोचता हु यहाँ हम बस खुद को सहमत कर रहे होते है। की मेंने सही किया और खुद को अच्छा महसूस करवा रहे होते है। जबकि खुद कुछ भी करे हम उसमे सही गलत कभी नहीं देखते बस किसी और के यहाँ जो हो रहा है। उसमे हमें अच्छा और बुरा सब दिखाई देता है।

एक बार की बात है एक गांव में एक परिवार रहता था। उनके एक लड़का और एक लड़की थी। दोनों की उम्र में 3 साल का फर्क था।  पिता की गांव में जमीन थी जिस पर वह खेती करके अपने परिवार गुजारा करते थे। उनकी इच्छा थी की वह अपने बच्चो को अच्छी पढ़ाई  करवाए। उनके बच्चे उनकी तरह खेती न करे अच्छी पढाई करके अच्छी नौकरी करे। इसलिए उन्होंने फैसला लिए की गांव में पढ़ाई पूरी करने के बाद वह अपने बच्चो को शहर में पढाई करवायेंगे। और ऐसा ही हुआ गांव में पढाई पूरी होने के बाद उन्होंने अपने बच्चो को शहर में पढ़ने के लिए भेजा। दोनों बच्चे पढ़ने में होशियार थे। उन्होंने अपनी ग्रजुएशन पूरी करली।और दोनों बच्चो को  जॉब भी शहर में मिल गई। और वह शहर में रहना सिख गए और शहर की चीजे रहन सहन उन्हें अच्छा लगने लगा। शहर में कई नए दोस्त भी बन गए। अब जब भी गांव के घर आते बस कुछ घंटो रहते फिर उनका मन उन्हें शहर की तरफ ही लेजाता। अब बच्चे बड़े हो गए थे। तो उनके पिता को उनकी शादी की चिंता होने लगी। और पिता ने लड़की के लिए लड़का देखना शुरू किया। लड़की पिता की बात मानती थी।लड़की के पिता ने लड़की से कहा की बेटी अब तुम्हारी शादी की उम्र हो रही है। अब तुम्हे शादी करनी होगी। यह सुनकर बेटी बहुत दुखी होती। और सोचती की क्यों किसी लड़की को पिता का घर छोड़ना पड़ता है। फिर उसे समाज के रीती रिवाज बताये जाते फिर उसने सोचा की वो कही ऐसी जगह शादी करले जहा उसे पिता का घर छोड़ना ही न पड़े उसे कोई ऐसा लड़का मिले जो उसके माता पिता के साथ पूरी परिवार का ध्यान रखे। वह उसके पिता को यही बोलती। उसके पिता उसकी बातो को समझते और उसके लिए जैसा वो चाहती वैसा ही लड़का ढूंढते। इसी बीच लड़की को एक लड़का खुद की पसंद से पसंद आजाता है।  मगर वह डरती की वह उसके लिए उसके माता पिता  को कैसे बताये । फिर भी उसने हिम्मत करके अपने माता  पिता को सब कुछ बता दिय। ये सब सुनकर उसके पिता बहुत गुस्सा हुए और वही समाज जाती बिरादरी की सोचने लगे।और लड़की को समझने लगे की बीटा ऐसा नहीं होता लोग क्या कहेंगे क्या बोलेंगे यह सब बोलकर उसको समझने लगे। लड़की भी समझ गई की लाइफ अपनी खुशियों से नहीं समाज और समाज के लोगो के कहने से चलती है।  हमारे समाज में आज भ्ही अक्सर ऐसा होता है जब हम बच्चो को ओपन माइंड से सब कुछ करने को कहते है और जब बच्चे अपने जीवन के निर्णय खुद लेते है तो हम उनपर समाज जाती का प्रेशर बनाकर उनकी खुशियों को दबा देते है। हमारी सोच ही हमारे बच्चो की खुशियों को छीन लेती है। और फिर हम उन्हें खुशियों के साथ सैक्रिफाइस करवा देते है।

और फिर सोचते है की हमने बहुत अच्छी लाइफ दी है। जबकि ये सब वो खुद भी जानते है की समय के साथ सब कुछ एडजस्ट हो जाता है। वो बस खुद बड़ा रखना चाहते है।और प्यार और खुशियों का नाम देते है।

जबकि प्यार व्यार कुछ होता ही नहीं है बस एक अट्रैक्शन और अपने जीवन के साथ समझौता है। जो हमें हर जगह करना पड़ता है। कई बार खुदको या फिर कई बार हमें हमारे सच्चे रिश्तो से कई बार लोगो की सोच को लेकर हम हर जगह समझौता करते रहते है। और लाइफ को  जीते चले जाते है।     

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