हमें हमारे निर्णय बहुत ही सोच समझकर लेने चाहिए। क्युकी उस निर्णय में बहुत लोगो का भविष्य निर्भर रहता है। हम कभी खुद को पहचान ही नहीं पाते। बस और ज्यादा और ज्यादा के चक्क्र में पूरा जीवन बहगते रहते है। कभी कभी इस मोह के चक्कर में हम खुशियों को भी भूल जाते है। और मोह के चककर में उलझे रहते है। और खुद को ज्यादा बुद्धिमान समझने लगते है। हम भी उसी भीड़ का हिस्सा बन जाते है जो हम देखते है। अगर कुछ अलग और सच्चे मन से करे।तो हम हमारी सभी इच्छाएं पूरी कर सकते है।
एक बार एक राजा था। और उसकी पीढ़ी दर पीढ़ी एक राज्य पर राज करती आरही थी। और सभी ने ईमानदारी से अपने राज्य की प्रजा को संभाला और अपने कर्तव्य का पालन किया। पुरे राज्य की प्रजा खुश थी। अब राजा यही चाहता था की उसकी भी एक संतान हो जो उस राज्य का उत्तराधिकारी बने। मगर कई वर्षो तक राजा के कोई संतान नहीं हुई। और उसकी उम्र भी बढ़ रही थी। तो राजा को चिंता होने लगी की उसके जाने के बाद उसके राज्य का उत्तराधिकारि कोन बनेगा। उसकी चली आरही प्रथा अब टूट जाएगी। एक बार रात्रि में राजा विचार कर रहा था। की अब इस राज्य का उत्तराधिकारी कोन बनेगा। जो बुद्धिमान और श्रेष्ट हो तभी राजा एक योजना बनाता है। और यह योजना वह गुप्त रखता है। और दूसरे दिन सभा में वह मंत्री को यह आदेश देता है। की राज्य में यह घोषणा करवा दो। की जो भी राजा से मिलने आयेगा राजा उसे अपने हिस्से मेसे कुछ हिस्सा देंगे। तभी मंत्री जी बोलते है की महाराज आप समझ रहे है की आप क्या बोल रहे रहे है। राजा बोलता है हां हम सब समझ रहे है। मगर तुम ये घोषणा करवा दो।सभी प्रजा राजा की घोषणा से कुछ समझ नहीं पाती। और राजा सभी के आने का एक बहुत बड़ा आयोजन करता है। सभी के रहने खाने की व्यवस्था करता है। राज्य के सभी लोग वव्हा आकर आयोजन का लुत्फ़ उठाते है। और सोचते है पहले आयोजन का लाभ उठाया जाये। राजा से अपना हिस्स्सा तो बादमे भी लेलेंगे। तभी उनमे से एक लड़का राजा से मिलने आता है। और राजा से मिलता है। तो राजा उसे बोलता है क्या तुम आयोजन का लुत्फ़ नहीं उठा रहे। क्या तुम अपना हिस्सा लेने आये हो। तो लड़का बोलता है। ऐसे आयोजन तो आप बादमे भी बहुत करदेंगे। और में बादमे भी इनका लुत्फ़ उठा सकता हु। परन्तु ऐसे आपसे मिलने का और बात करने का समय आपसे नहीं मिल पायेगा। तुम सबसे पहले आकर मुझसे मिले हो। में अपने हिस्से में से कुछ हिस्सा तुम्हे देता हु।
तब लड़का कहता है महाराज मुझे हिस्सा नहीं चाहिए। में तो बस यही कहने आया हु की महाराज बस आप अपना निर्णय बदल ले। मुझे आपके हिस्से से नहीं आपसे लगाव है। जिस राज्य में आप जैसा महान राजा हो। जो सबका भला सोचता हो उसके आगे इन सबका क्या मोल।
राजा उस लड़के की बात सुनकर अपने मंत्री से बोलता है। की मंत्री जी यही मेरे बाद हमारे राज्य का उत्तराधिकारी होगा। तो मंत्री कहता है।
ये तो एक साधारण सा लड़का है अपने इस लड़के में क्या देखा। तो राजा कहता है। तुम्हे ये साधारण सा लड़का लगता है। मगर मेरी नजर में ये एक बुद्धिमान, ईमानदार, कौशल और योग्य लड़का है। जैसा इस राज्य के उत्तराधिकारी को होना चाइये। और फिर राजा ने इस अयोजन का मकसद बताया। की उन्होंने यहाँ आयोजन इसलिए करवया की वह देखना चाहते थे। की इस राज्य में कोई तो ऐसा व्यक्ति होगा। जिसमे लोब लालच ना हो। इस आयोजन में और जितने भी लोग आये है। वह सभी अपने हिस्से के लिए आये है। किसी को भी इस निर्णय का कारन नहीं जानना मेने इसे सोच परख करके ही यह निर्णय लिया है। और राजा उसे राज्य का उत्तराधिकारी घोषित करदेता है।
जीवन में कभी भी लालच नहीं करना चाहिए। हमेशा ईमानदार रहे। क्यकि लालच हमारा चरित्र और बुद्धि को नस्ट करदेता है।हमेशा सबके के अच्छे के लिए एक अच्छी सोच ही हमें अच्छा व्यक्तित्व देती है। कभी लालच के पीछे नहीं भागना चाहिए। हमारी सोच ओरो से अलग रखनी चाहिए।