हम अपने जीवन में धन को अधिक महत्व देते है और हम धन को ही सबकुछ मान लेते है और हम ये मानते है कि संसार में धनी वयक्ति ही सबसे शक्तिशाली है हम यह मानते संसार में जिसके पास धन दौलत समाप्ति है वही बुद्धिमान है। ये हमारी मानसिकता बन गई है
जीवन में धन,सुख सुविधाएं हमारे भीतर की उलझन को खतम नहीं कर सकती नहीं इस उलझन से कोई इंसान बच सकता है इसी कारण आज जीवन में हर कोई परेशां है क्युकी मन की शान्ति धन से नहीं मिलती यह तब मिलती है जब हम इस धन के लालच को ख़त्म करदेंगे।
एक बार की बात है एक राजा था उसके पास सब कुछ थ। वह राजा धार्मिक कार्यो मे बहुत रूचि लेता था भूखो को भोजन कराता था। दान पुण्य करता था। गरीबो की सहयता करता था। मगर ये सब मन से नहीं करता था। ये सब करने के पीछे उसकी मंशा सिर्फ बनावटी थी। वह लोगो को दिखने के लिए यह सब करता था। एक दिन उसी राज्य में एक संत आये जो सत्य के मार्ग पर चलते थे। और झूठे दिखावे से दूर रहते थे। वह संत उस नगर में पहुंचते है। तो वह उपदेश सुनाने के लिए एक सभा करते है। इस सभा की खबर और संत के आने की खबर राजा तक पहुंच जाती है।और राजा संत से मिलने उस सभा में पहुंच जाते है।और और संत से कहते है। आप यहाँ आये उसके लिए में आपका बहुत आभारी हु। और कहता है आप यहाँ आये मेरी प्रजा को उपदेश दिया इसलिए में भी आपको कुछ देना चाहता हु। संत बोले ये मेरा कर्तव्य है। लोगो को सही राह के लिए प्रेरित करना और सही मार्ग दिखना। यही मेरा कार्य है। इस पर राजा कहता है की मेरा भी कर्तव्य है। क्युकी की आप ने यहाँ आकर मेरी प्रजा को उपदेश देकर धन्य किया है। बताये आप को क्या चाहिए।में जो आप बोलोगे में वो दूंगा। संत को प्रजा की बातो से राजा स्वाभाव पहले ही पता चल गया था। तो महात्मा कहते है ठीक है। फिर आप मुझे अपनी तिजोरी से स्वर्ण मुद्राये दे दे तो राजा कहता है की ठीक है मगर आप उन्हें लकेर कैसे जायेंगे महत्मा कहता है की में इस कमण्डल में रख लूंगा। राजा मन ही मन सोचता है की इस कमंडल में कितनी स्वर्ण मुद्राये आएंगी और मेरा नाम भी हो जायेगा। वह उसके पास रखी एक एक सभी स्वर्ण मुद्रा उस कमंडल में डालने लगता है। और थोड़ी देर में वह सभी स्वर्ण मुद्राये उस कमंडल में डाल देता है। मगर फिर भी कमंडल खली ही दिखाई देता है। राजा ने जो सोचा था वह नहीं हुआ। फिर राजा अपने पहने हुए सभी आभूषण भी उस कमंडल में डाल देता है। मगर फिर भी वह नहीं भरता। यह देख राजा सोचता है की अगर में ेयह कमंडल नहीं भरा तो राज्य में लोग मुझपर हसेंगे और मेरे बारे में गलत सोचेंगे। यहाँ देख राजा अपने मंत्री को बुलाकर अपनी तिजोरी से और सिक्के लाने को कहता है।और मंत्री सभी रखे हुए सिक्के ले अत है और राजा सभी सिक्को को कमंडल में डाल देता है। और ऐसे करते करते उसके महल में रखे सभी स्वर्ण आभूषण वह उस कमंडल में डाल देता है। मगर वह कमंडल फिर भी खली ही रहता है। और वह थक हार के पास में ही बैठ जाता है। तो संत कहते है की क्या हुआ राजा अभी मेरा कमंडल खाली है। वह भरा नहीं है। तो राजा कहता है मुझे माफ़ करे में आपका ये कमंडल भर नहीं पाउँगा। तो तो संत कहते चलिए कोई बात नहीं आप मुझे कुछ और ही देदीजीए राजा कहता है की में आपको कुछ नहीं दे पाउँगा।संत कहते है दे पाएंगे अगर सच्चे मन से देंगे तो। राजा बोला बातये क्या दे सकता हु में।
संत बोले आपका ये अहंकार मुझे दे दीजिये और अबसे जो भी करे मन से करे साफ मन से करे। और अहंकार को त्याग कर करे। ये सब सुनकर राजा को आभास होता है। की उसने आज तक जो भी किया उसने अपने अहंकार में किया। स्वयं को सबकी नजरो में ऊपर उठाने के लिए किया।किसी की सहायता के लिए नहीं। फिर उसने उस कमंडल के नहीं भरने का कारन पूछा। तो संत बोले जैसी हमारे मन की इच्छाएं कभी नहीं भर्ती हमारा मन और ज्यादा और ज्यादा की इच्छा रखता है राजा बोलै फिर हम इन इच्छाओ का क्या करे। ये तो आना स्वाभाविक है। संत कहते है त्याग करो। अगर आप मन की शांति चाहते हो तो इच्छाएं, लालच , अहंकार इन सबका मन से त्याग करो। और जब आप अंदर से मन से संतुष्ट हो जायेंगे। उस दिन आपके दुःख अहंकार सब कुछ ख़त्म हो जायेंगे। और जब सब कुछ ख़त्म हो जायँगे हमारे जीवन को संतुस्ट करलेंगे। तब हमारा मन खुद को अच्छा महसूस करेगा। और हमारा मन शांत हो जायेगा। संत की यह बात सुनकर राजा सब कुछ समझ जाता है। और महत्मा के चरणों में गिर जाता है।
इस कहानी से हम ये समझ सकते है सिख सकते है की जीवन में इच्छाएं तो कभी खतम नहीं होंगी। मगर इन इच्छाओ की वजह से हमारे मन में जो गलत विचार और अहंकार आजाता है वह हमें कभी शांत नहीं रहने देता। जीवन में वस्तुए, धन ,दौलत बस एक जीने के लिए साधन है और हम इन्हे लालच में, अहंकार में आकर ज्यादा महत्व देने लगते है। पैसे को प्राथमिकता पर रखते है और खुशियों को दूसरा स्थान देते है। जीवन को आनंद से जीने लिए खुश रहने के पैसे नहीं मन का शांत रहना ज्यादा जरुरी है।