- एक बार एक गुरु अपने शिष्य के घर गए। और शाम हो जाने की वजह से उन्हें वही रात्रि विश्राम करना पड़ा। रात्रि को भोजन करते वक्त उन्होंने अपने शिष्य का चेहरा देखा। वह बहुत चिंतित लग रहा था। उन्होंने अपने शिष्य से पूछा क्या हुआ। में जबसे आया हु। तबसे तुम्हे देख रहा हु। तुम बड़े चिंतित दिखाई दे रहे हो। तो शिष्य ने यहाँ कहकर टाल दिया की नहीं गुरूजी कुछ नहीं हुआ सब ठीक है। तब फिर से गुरु जी ने कहा। हुआ तो है मगर तुम अगर नहीं बताना चाहते तो ठीक है मत बताओ।तो शिष्य को लगा गुरूजी नाराज हो गए। फिर उसने बताया की गुरूजी मेने जो धंधा किया था। उसमे मेने 10 लाख का फायदा सोचा था और मुझे 5 लाख का नुकसान हो गया। गुरूजी बोले कैसे तो शिष्य बोला मेने 10 लाख का फायदा सोचा था। मगर मुझे 5 लाख का ही फायदा हुआ। और 5 लाख का नुकसान हो गया। तब गुरूजी को बात समझ आगई। की वह 5 लाख का फायदा नहीं देख रहा। वह बस अपने 5 लाख के नुकसान के बारे में सोच रहा है।
हमारी लाइफ में भी ऐसा ही होता है। जितना मिले कमही लगता है और हम और ज्यादा और जयदा के चक्कर में लगे रहते है हम ये नहीं देखते की हमें जो मिला है वह ही बहुत है और जो हमें मिलता है हम उसपर ध्यान ना देकर जो नहीं मिला उसपर ध्यान देते है और परेशान होते रहते है हम हमारी सोच को ऐसा बना लेता है जिसमे बस हमेशा फायदा ही देखते है। चाहे जॉब हो या व्यापर बस ज्यादा से फायदा होना चाहिए अगर जॉब में हो। तो थोड़े दिन काम करने पर हमें सैलरी कम लगने लगती है। और व्यापर हो तो फायदा जितना भी हो कम ही लगता है। जबकि ऐसे बहुत से लोग है जिन्हे वह भी नहीं मिलता।जबकि हमें ये सोचना चाहिए की जहा हम है वह हम कैसे कितनी मेहनत से वह पहुचे है। शायद बहुत लोगो को नहीं मिला हुआ।इसलिए जो हमें हमारे पास है जो हमें मिला हुआ है।उसका धन्यवाद करे। और मेहनत करते रहे।