हमारा मस्तिश्क एक कल्पवृक्ष के समान है।जिसका हम हमारे आत्मविश्वास ओर विचारो के आधार पर प्रयोग करते हैं।हमारी सभी प्रक्रिया पहले हमारे मस्तिश्क में आती है।जिन्हे हम विचारो का रूप देते हैं।फिर हम उस प्रक्रिया के बारे में सोचते हैं। हमारा मन ओर मस्तिश्क दोनों एक दूसरे से इस तरह जुड़े होते हैं।जैसे ये हमारे पूर्व जन्म के रिश्ते की याद दिलाते हैं।दोनों एक दूसरे की बात मानते हैं। हमारा शरीर भी इनमें से एक है।और जब ये दोनों अपनी नियत्रण में नहीं रहते। तो हमारा शरीर भी नियत्रंण खो देता है।