जानवर हमेशा बेजुबान होते हैं। और हम उनकी इसी बेजुबानी का फायदा इस तरह उठाने लगते हैं कि वो बस सहते रहते हैं। सहते रहते हैं।
एक बार एक इंसान को घोड़े पालने का बहुत शौक था। उसके पास 7 घोड़े थे। जिनको वो अक्सर रेस में दौड़ाया करता था। उनमें से एक घोड़ा हमेशा जीतता था। मानो जीत ही उसका लक्ष्य हो। लेकिन फिर भी उसका मालिक चाबुक से हर रोज उसे इस तरह से मारता था कि कभी-कभी तो उसकी पीठ पर चाबुक के निशान तक हो जाते। फिर भी वो अपना कर्म और लक्ष्य नहीं भूलता, रेस में हमेशा नं 1 आता।
उन सभी 7 घोड़ों में से उसकी एक से बहुत अच्छी दोस्ती हो जाती है। इतनी गहरी कि दोनों एक दूसरे की भावनाओं से ही मन की बात समझ लिया करते। वो जीतने वाले घोड़े को रोज मालिक की बेहरमी से मार खाता हुआ देखता।
एक दिन दोनों अस्तबल में एकसाथ खड़े थे। दूसरे घोड़े ने हमेशा जीतने वाले घोड़े से पूछा, “भाई तुम हमेशा नं 1 आते हो। हमेशा जीतते हो। फिर भी मालिक के इतने चाबुक खाते हो। कैसे सह लेते हो?”
तो जीतने वाला घोड़ा बोला, “भाई हम बेजुबान हैं। क्या ही बोल पाएंगे। और फिर दौड़ना तो हमारा कर्म है। चाहे कोई भी रेस हो। तो बस इसलिए मैंने सहना सीख लिया है।”
हमारी लाइफ भी एक समय बाद ऐसी ही हो जाती है। हम इंसान होकर भी किसी को समझा नहीं पाते। फिर हम भी बोलने से ज्यादा चुप रहना और सहना सीख जाते है। और सहते जाते है। और इससे हमारी हिम्मत और बढ़ती जाती है। और सब कुछ आसान होता जाता है।
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