जब हम एक उम्मीद से एक पोधा लगाते हैं।
यह सोच कर कि ये बड़ा होकर पेड़ बनेगा और मीठा फल देगा।
और उसके लिए हम उस पर मेहनत करते हैं।
पानी देते हैं, खाद देते हैं। और एक छोटे बच्चे की तरह बड़ा करते हैं|
मगर फिर भी बड़ा होने के बाद उसके सभी फल मीठे नहीं होते।
कुछ मीठे, कुछ खट्टे या कुछ ख़राब निकलते हैं।
अगर मीठे निकले तो ठीक है।
मगर कुछ ख़राब निकले तो हम पेड़ के सभी फलो को ख़राब समझने लगते हैं।
या सोच समझ कर फल खाते है।
इसी तरह हमारे रिश्ते भी होते हैं
पहले हम उन्हें मजबूत बनाने के लिए बहुत मेहनत करते है।
हमारे जज्बात, हमारी भावनाएं, हमारा समय सब कुछ देते है।
मगर फिर जब वो रिश्ते मजबूत हो जाते हैं
और जब हमें उन रिश्तों की एक दूसरे को जरुरत होती है। तब हम उनमे कमिया ढूंढ कर, उनसे दूर होने की कोशिश करने लगते हैं।
या बहाने ढूंढन लगते हैं इसलिए हर रिश्ते में हर चीज की उतनी ही उम्मीद राखो जितना समय अने पर उसे सहन कर सको,पहिचान सको।
वो कहते हैं।
ना बनने में सालो लग जाते हैं
ओर बिगाड़ने के लिए कुछ शब्द ही काफी है।