मन के जीते जीत है।
मन के हारे हार।
एक बार एक राजा था। वह स्वाभाव में काफी सरल और नरम था। और हमेशा इसी प्रयास में लगा रहता है।और वह अपने राज्य के लोगो की हमेशा मदद करता रहता। और हमेशा यही सोचता रहता।
एक बार वह एक यात्रा करके लौट रहा था। तो वह रस्ते में कुछ भूखे लोगो को देखता है। और वह उनकी सहायता करने की सोचता है। और महल में आकर वह अपने मंत्री से बुलाकर पूछता है। की हम भूखे लोगो की मदद के लिए क्या कर सकते है। तो मंत्री कहता है। महाराज हम भूखे लोगो की मदद के लिए हम उनको खाना खिला सकते ह। यह सुझाव राजा को समझ आ जाता है। तब राजा मंत्री को बोलता है। की आज से सभी भूखे लोग महल के बहार आकर खाना खा सकते है। और राजा ने प्रतिदिन खाने की व्यवस्था कर दी। अब भूखे लोग प्रतिदिन वहां आते और भोजन करते। और अब रोज यही होता। एक बार राजा एक आयोजन करता है। और राज्य के सभी लोग वहां भोजन के लिए आते है। और भोजन करते है। परन्तु न जाने कब एक रसोइये द्वारा बनाये गए एक व्यंजन में एक जहरीला जिव गिर जाता है। और वह व्यजन जहरीला हो जाता है। और यह किसी को पता नहीं चलता। भोजन करने के कुछ देर बाद उस जहरीले व्यजन की वजह से लोगो की मृत्यु होने लगी। और कुछ ही देर में यह खबर पुरे राज्य में फेल गई। किराजा द्वारा जहरीला भोजन करवाया गया। जिसके कारन बहुत से लोगो की मृत्यु हो गई। यह खबर सुनने के बाद राजा हैरान हो गया। और उसने पुरे महल में इन सबकी जाँच की तो पाया की उस व्यंजन में एक जहरीला जिव मरा गिरा हुआ था।जिसके कारन यह सब हुआ। अब राजा बहुत दुखी होता है। और इन सबका दोषी खुद को मानने लगता है। और हमेशा दुखी रहता है। की यह सब उसकी वजह से हुआ है। और वह इसके लिए पस्चताप करने लगता है। और महल से निकल जाता है। और चलते चलते एक गांव में पहुंच जाता है। और गांव वालो सेपूछता है। की यहाँ कोई धार्मिक गुरु रहते है।तो गांव वाले बताते है की यही पास में एक आश्रम है। अब वह उस गुरु के पास पहुंच जाता है। और उन्हें सारी बात बता देता है।और उनसे कुछ दिनों उनके पास रहकर भगवान् का स्मरण और साधना करना चाहता था। वह गुरु से इसकी आज्ञा लेता है। और बोलता है की क्या वह कुछ दिन यहाँ रह सकता है। गुरु उसके चेहरे के भाव और उसकी बातो से सब समझ जाते है। की उसकी कोई गलती नहीं है। ना ही उसने कुछ गलत विचार से किया। और वह उसे वह रहने की अनुमति देदेते है। और उसे पूरी दिनचर्या का पालन समय के हिसाब से करने के लिए कहते है। वह कुछ दिनों तक गुरु के दिए आदेश का पालन करता रहता है। मगर कुछ दिनों में ये खबर पुरे गांव में फेल जाती है। और सभी शिष्यों को भी ये पता चल जाता है। की गुरु जी ने उस राजा को शरण दी है। जिसने कई हत्याएं की है। और सभी यह जानने के लिए उत्सुक होते है। की उन्होंने उस राजा को शरण क्यों दी। तभी गुरु जी सायं काल ध्यान के समय सभी शिष्यों के बीच उस की कहानी सुनना शुरू करते है। और पूरी कहानी सुनाने के बाद अपने शिष्यों से पूछते है। की क्या इसमें उस राजा की कोई गलती थी। जो सभी ने उसको दोषी मान लिया। तभी एक शिष्य उनमे से खड़ा होकर बोलता है। नहीं गुरु जी उस राजा का कोई दोष नहीं था। वह अपनी जगह अपने कर्म कर रहा था। और ये कर्म करते हुए बस एक दुर्घटना मात्र है। मगर जब उसी ने खुदको इनसबका दोसी मान लिया और सब कुछ छोड़कर चला गया तो फिर उसकी प्रजा का भी कोई दोष नहीं। जिसकी सजा वो प्रजा बिना राजा के भुगत रही है। प्रजा एक राजा का परिवार होता है। राजा उस परिवार का मुखिया राजा के चले जाने के बाद आज वो प्रजा बिना मुखिया के किस तरह रह रही होगी। वह राजा उस शिष्य की बाते पास खड़े होकर सुन रहा होता है। और उस शिस्य की यह बात सुनकर राजा को बहुत पछतावा होता है। की उसे उसका राज्य ऐसे छोड़कर नहीं आना चाहिए था। उसके पीछे से उसके राज्य की क्या हालत हो रही होगी। और सोचता है की जो हो हुआ अनजाने में हुआ।
फिर राजा दूसरे दिन सुबह उठकर गुरु के पास जाता है। और उस शिष्य की कही बातो से हुए उसके ह्रदय परिवर्तन के बारे में बताकर वापिस लोट जाने की अनुमति मांगता है।
और फिर वह दोपहर में अपने राज्य लोट जाता है।
हमारे जीवन में भी कई बार ऐसा होता है। जब हमारी कोई गलती होती नहीं है मगर फिर भी हम उस गलती को मान लेते है। और ये सोच लेते है की वह गलती हमसे हुई है। गलती करना इंसान का स्वाभाव होता है। मगर कई बार हमसे भी कुछ गलतिया अनजाने में हो जाती है। जिनका दोषी हम खुदको मानने लगते है। हमें जब तक सच का पता ना हो किसी को भी दोषी नहीं मानना चाहिए। और अनजाने में हुई गलतियो को भूल आगे बढ़ने का सहस करना चाहिये।